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क्या है शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व?

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माँ कालरात्रि की पूजा का महत्व

Shardiya Navratri Day 7 Maa Kalratri Vrat Katha

शारदीय नवरात्रि का सातवाँ दिन माँ कालरात्रि की पूजा के लिए विशेष होता है। माँ कालरात्रि को शक्ति और उग्रता का प्रतीक माना जाता है, जो अपने भक्तों को भय, दुश्मनों और नकारात्मकता से बचाती हैं। इस दिन उनकी उपासना से साहस और कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। यदि कोई व्यक्ति डर या चिंता से जूझ रहा है, तो इस दिन की पूजा उसके लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि 2025 के सातवें दिन का महत्व, कथा, पूजा विधि, शुभ रंग और प्रिय भोग।


नवरात्रि का सप्तम दिन कब है?

शारदीय नवरात्रि 2025 का सातवाँ दिन 29 सितंबर 2025, सोमवार को मनाया जाएगा।


माँ कालरात्रि का स्वरूप


माँ दुर्गा का सातवाँ स्वरूप माँ कालरात्रि अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमयी मानी जाती हैं। उनका रंग गहरा काला है, इसलिए उन्हें कालरात्रि कहा जाता है। उनका रूप भले ही भयानक लगे, लेकिन वे अपने भक्तों की सभी बाधाएँ दूर करती हैं। माँ कालरात्रि के बाल बिखरे हुए होते हैं और उनके गले में चमकती हुई माला होती है। उनके तीन नेत्रों से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं। उनका वाहन गधा है, जो साहस और कठिनाइयों को समाप्त करने का प्रतीक है। उनकी उपासना से भक्तों को शक्ति, साहस और विजय प्राप्त होती है।
माँ कालरात्रि की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दैत्य शुंभ और निशुंभ ने अत्याचार फैलाना शुरू किया, तब देवी दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया। उनका रूप इतना भयंकर था कि दानव डरकर भागने लगे। कालरात्रि ने चंड और मुंड का वध किया और उनके सिर देवी चामुंडा को अर्पित किए गए। इसके बाद उन्होंने रक्तबीज नामक असुर का वध किया, जो अपने खून से नया दानव बनाता था। माँ कालरात्रि ने उसके खून को अपनी जिह्वा पर लेकर उसे समाप्त कर दिया। इस प्रकार उन्होंने संसार को दैत्य आतंक से मुक्त किया। यह कथा देवी दुर्गा सप्तशती और मार्कंडेय पुराण में वर्णित है।


सप्तम दिन का महत्व

माँ कालरात्रि की पूजा से भक्त के जीवन से भय और कठिनाइयाँ दूर होती हैं।


भूत-प्रेत की बाधाएँ समाप्त होती हैं।


कामों में आ रही रुकावटें दूर होती हैं।


साधना से आत्मिक बल और आत्मविश्वास बढ़ता है।


नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियाँ नष्ट होती हैं।


परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।


साधक का सहस्रार चक्र सक्रिय होता है, जिससे आध्यात्मिक ज्ञान और ध्यान की गहराई बढ़ती है।


माँ कालरात्रि की पूजाविधि

प्रातः स्नान कर स्वच्छ नीले या गहरे रंग के वस्त्र पहनें।


पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और माँ दुर्गा का कालरात्रि स्वरूप स्थापित करें।


दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएँ और देवी का ध्यान करें।


देवी को लाल फूल, सिंदूर, चंदन, गंध, और अक्षत अर्पित करें।


देवी का प्रिय पुष्प रजनीगंधा या गेंदा है।


भोगस्वरूप गुड़, तिल से बने व्यंजन और ताजे फल अर्पित करें।


“ॐ देवी कालरात्र्यै नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।


दुर्गा सप्तशती के “रात्रि सूक्त” का पाठ करना विशेष फलदायी है।


अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।


माँ कालरात्रि का प्रिय भोग

माँ कालरात्रि को गुड़ और तिल से बने व्यंजन जैसे गुड़ के लड्डू, हलवा, और मालपुआ प्रिय हैं। इन्हें भोग के रूप में अर्पित करना शुभ माना जाता है। भोग में ताजे फल और शहद भी शामिल किए जाते हैं। मान्यता है कि गुड़ का भोग देने से भक्तों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इस दिन माता का प्रसाद ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को बांटना पुण्यदायी माना जाता है। ऐसा करने से माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त होती है।


माँ कालरात्रि का मंत्र

इस दिन माँ कालरात्रि की पूजा में “ॐ देवी कालरात्र्यै नमः” मंत्र का जाप सबसे प्रभावशाली माना जाता है। इस मंत्र के जाप से भय, तनाव और मानसिक अशांति दूर होती है। यह साधक को शक्ति, आत्मबल और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।


सातवे दिन का शुभ रंग

शारदीय नवरात्रि 2025 के सातवें दिन का शुभ रंग नारंगी है। नारंगी को उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।


सप्तम दिन के आध्यात्मिक फल

माँ कालरात्रि की पूजा से आत्मविश्वास और निडरता बढ़ती है।


साधक के जीवन से भय, रोग और शोक का नाश होता है।


नकारात्मक शक्तियों और शत्रुओं पर विजय मिलती है।


सहस्रार चक्र के सक्रिय होने से आध्यात्मिक प्रगति होती है।


रोग-मुक्ति और मानसिक शांति प्राप्त होती है।


देवी की कृपा से सफलता और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।


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